hindisamay head


अ+ अ-

कविता

राजेंद्र यादव की याद में मर्सिया

फ़िरोज़ ख़ान


जो अब चला गया तो अफसोस क्यों है
किसलिए ये मर्सिये
गमज़दा हो किसलिए

तुम्हारी महफिल में था जो बैठा
शाम ढलते, रात होते
तुम्हारे ताने, तुम्हारे फिकरे
सुन रहा था वो सब मुस्कुरा के
हजार उँगलियाँ थीं उसकी जानिब
काले चश्मे की जिल्द से वो
यूँ देखता था कि कुछ कहेगा

उतरते चाँद तक जो था साथ तुम्हारे
भोर होने से पहले उठा अचानक
सोचा कि कहे 'ये सभा बर्खास्त होती है'
फिर ये सोचकर चुपचाप चल दिया होगा
कि फैसले हाकिम सुनाते हैं

इस बीच टूटा होगा कोर्इ तारा
और टूटती साँसों के बीच शायद कहा होगा उसने
'इस महफिल को रखना आबाद साथी'
या फिर
कहते-कहते वो रुक गया होगा
क्योंकि फैसले हाकिम सुनाते हैं


End Text   End Text    End Text